Wednesday 21 December 2016

गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती


गुरु गोबिंद सिंह जी की जीवनी

गुरु गोविन्द सिंह जी का सिख समुदाय के विकास में बहुत बड़ा हाथ है। गुरु गोविन्द सिंह जी सिख धर्म के संस्थापक तो थे पर सिख धर्म के आगे ले जाने में उनका बहुत बड़ा हाथ था जैसे उन्होंने सैन्य लोकाचार को शुरू किया जिसमें कुछ पुरुष सिखों को हर समय तलवारों  को साथ रखने को कहा गया। सिख समुदाय में वे आखरी सिख गुरु थे और उन्हें इसी कारण परम गुरु, गुरु ग्रन्थ साहिब  के नाम से जाना जाता है।

गुरु गोबिंद सिंह का जन्म और प्रारंभिक जीवन

गोबिंद सिंह अपने पिता गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी के एक मात्र पुत्र थे। उनका जन्म 22 दिसम्बर, 1666, को पटना साहिब, बिहार, भारत में हुआ था। उनके जन्म के समय उनके पिता बंगाल और असम में धर्म उपदेश देने के लिए गए हुए थे। उनका जन्म नाम गोबिंद राय रखा गया था। उनके जन्म के बाद वे पटना में वे चार वर्ष तक रहे और उनके जन्म स्थान घर का नाम “तख़्त श्री पटना हरिमंदर साहिब” के नाम से आज जाना जाता है। 1670 में उनका परिवार पंजाब वापस लौट आये। उसके बाद मार्च 1672 में वे चक्क ननकी चले गए जो की हिमालय की निचली घाटी में स्तिथ है। वहां उन्होंने अपनी शिक्षा ली। चक्क ननकी  शहर की स्थापना गोबिंद सिंह के पिता तेग बहादुर जी ने किया था जिसे आज आनंदपुर साहिब के नाम से जाना जाता है। उस स्थान को 1665 में उन्होंने बिलासपुर(कहलूर) के शसक से ख़रीदा था।
अपनी मृत्यु से पहले ही तेग बहादुर ने गुरु गोबिंद जी को अपना उत्तराधिकारी नाम घोषित कर दिया था। बाद में मार्च 29, 1676 में गोबिंद सिंह 10वें सिख गुरु बन गए। यमुना नदी के किनारे एक शिविर में रह कर गुरु गोबिंद जी ने मार्शल आर्ट्स, शिकार, साहित्य और भाषाएँ जैसे संस्कृत, फारसी, मुग़ल, पंजाबी, तथा ब्रज भाषा भी सीखीं। सन 1684 में उन्होंने एक महाकाव्य कविता भी लिखा जिसका नाम है “वर श्री भगौती जी की”| यह काव्य हिन्दू माता भगवती/दुर्गा/चंडी और राक्षसों के बिच संघर्ष को दर्शाता है।

परिवार के लोगों की मृत्यु

कहा जाता है सिरहिन्द के मुस्लिम गवर्नर ने गुरु गोबिंद सिंह के माता और दो पुत्र को बंदी बना लिया था। जब उनके दोनों पुत्रों ने इस्लाम धर्म को कुबूल करने से मना कर दिया तो उन्हें जिन्दा दफना दिया गया। अपने पोतों के मृत्यु के दुःख को ना सह सकने के कारण माता गुजरी भी ज्यादा दिन तक जीवित ना रह सकी और जल्द ही उनकी मृत्यु हो गयी। मुग़ल सेना के साथ युद्ध करते समय 1704 में उनके दोनों बड़े बेटों की मृत्यु हो गयी।

Tuesday 13 December 2016

गरीबों के लिए ‘जनआवास’ योजना


मुख्यमंत्री हरीश रावत ने आई.एस.बी.टी. फ्लाईओवर का लोकार्पण किया। विशेष आयोजनागत सहायता (एसपीए) के अंतर्गत नेशनल हाईवे संख्या 72 आई.एस.बी.टी. देहरादून में नवनिर्मित फोरलेन फ्लाईओवर की लागत 50 करोड़ 39 लाख रुपए है। केबिनेट मंत्री दिनेश अग्रवाल, विधायक राजकुमार भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि 983 मीटर लम्बाई का मल्टी एप्रोच फ्लाईओवर उत्तराखण्ड के लिए बड़ी उपलब्धि है। इसके बनने से हमारा कान्फिडेंस बढ़ा है। हमारी योजना ऐसे आठ दसफ्लाईओवर और बनाने की है। उन्होंने सचिव लोक निर्माण विभाग को इसके लिए कार्ययोजना बनाने के लिए निर्देशित किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि देहरादून पहले जेएनएनयूआरएम का फायदा नहीं उठा पाया था। हम देहरादून की तस्वीर बदलने की कोशिश कर रहे हैं। रिस्पना व बिंदाल रिवर फ्रंट डेवलपमेंट इसी दिशा में की गई पहल है। बल्लीवाला फ्लाईओवर शुरू किया जा चुका है, जबकि बल्लुपुर फ्लाईओवर भी जल्द ही शुरू कर दिया जाएगा।



मुख्यमंत्री ने कहा कि गरीबों को तरक्की में भागीदार बनाया जा रहा है। प्रदेश में गरीबों को आवास देने के लिए उत्तराखंड जनआवास योजना बनाई गई। इसका तीन माह बाद रुद्रपुर में शिलान्यास होगा। इसमें 33 हजार आवास बनाएं जाएंगे। मलिन बस्तियों का न केवल नियमितिकरण किया गया, बल्कि इनके विकास के लिए चार सौ करोड़ का रिवाल्विंग फंड भी स्थापित किया है। हमने सामाजिक सुरक्षा की पेंशन राशि को एक हजार रुपए किया है। पेंशन लाभार्थियों की संख्या 1 लाख 74 हजार से बढ़ाकर 7 लाख 25 हजार कर दी है। मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा में 1 लाख 75 हजार का बीमा कवर दिया जा कहा है। हम एपीएल में सबसे सस्ता गेहूं चावल दे रहे हैं। बिजली की उपलब्धता को 14 घंटे से बढ़ाकर लगभग 24 घंटे कर दिया गया है। महिला सशक्तीकरण की अनेक योजनाएं प्रारम्भ की गई हैं। हमने अपने स्टार्ट अप से सैंकड़ों युवाओं को उद्यमी बनाया है। केदारनाथ त्रासदी के बाद जिस तरह से काम किया गया उसी का परिणाम है कि इस वर्ष 15 लाख यात्री चारधाम यात्रा पर आए।
कैबिनेट मंत्री दिनेश अग्रवाल ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री रावत के नेतृत्व में विजन के साथ प्रदेश का विकास किया जा रहा है। सर्वाधिक प्रकार की सामाजिक सुरक्षा पेंशनें शुरू की गई हैं। पिछले दो वर्षों में देहरादून को आधुनिक शहर का रूप देने के लिए काफी काम किया
गया है।

Thursday 1 December 2016

इस साल 150 खेल मैदानों के लिए बजट दिया गया- मुख्यमंत्री

पिछले दो सालों में राज्य के भीतर खेल सुविधाएं विकसित करने में बहुत अच्छा काम किया गया है। राज्य में दो इंटरनेशल और 6 नेशनल स्टेडियम तैयार किए गए हैं। इसके साथ हाई एल्टीट्यूड मैदान भी उत्तराखंड में विकसित किए गए हैं। ये जानकारी राज्य के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पूर्व सैनिकों के एक कर्यक्रम में दी। इस मौके पर सीएम ने राज्य की खेलनीति की खासियत बताते हुए कहा कि सरकार ने जो खेल नीति तैयार की है उससे राज्यन के खिलाड़ियों का न केवल मनोबल बढा है बल्कि आयोजित खेलों में उनका उत्साह भी देखने को मिला है। सीएम ने कहा कि इस वित्तीय साल मे सरकार ने राज्ये के भीतर डेढ सौ खेल मैदानों के लिए बजट आवंटित किया है।

Sunday 27 November 2016

नोटबंदी: मुख्यमंंत्री ने लिखा केंद्रीय वित्त मंत्री को पत्र

नोटबंदी से आम जनता को हो रही परेशनी और राज्य के पर्यटन, कृषि व राजस्व पर पड़ रहे प्रतिकूल प्रभावों को देखते हुए मुख्यमंत्री हरीश रावत ने केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली को पत्र लिखा है। सीएम ने पत्र में लिखा है कि काले धन के संबध में विमुद्रीकरण एक अच्छा कदम है, परंतु इसके लिए तैयारियां भी उसी स्तर पर की जानी चाहिए थी। पत्र के द्वारा उन्होंने कहा है कि उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य और अल्प संसाधनों वाले राज्यों पर इसका विपरीत असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि पर्वतीय राज्य जहां एक बड़ी आबादी सहकारी बैंकिंग सिस्टम पर निर्भर है, वहां सहकारी बैंकों पर पाबंदियों से जनजीवन व कृषि गतिविधियां भी प्रभावित होंगी। राज्य के ग्रामीण व पर्वतीय क्षेत्रों में किसानों का बड़ा हिस्सा सहकारी बैंकों पर निर्भर है। बहुत से लोग ऐसे हैं जिनका खाता केवल सहकारी बैंकों में है। भारत सरकार ने सहकारी बैंकों द्वारा 500 और 1000 के पुराने नोट लेने पर रोक लगाई है। खरीफ की फसल के बाद जिन किसानों के पास नकदी थी, वे इस नकदी को अपने खाते में जमा नहीं कर पा रहे हैं। सीएम ने कहा कि, रबी फसल की बुवाई का समय भी शुरू हो गया है और ज्यादातर किसान सहकारी बैंकों से जुड़े हैं, रबी फसल के लिए बीज, उर्वरक व ऋण नहीं ले पा रहे हैं। इससे फसल के उत्पादन में गिरावट आना स्वाभाविक है। जिसका परिणाम भविष्य में खाद्य पदाथों की बढ़ती कीमतों के रूप में देखने को मिलेगा। इसलिए सहकारी बैंकों को 500 व 1000 के नोट स्वीकार किए जाने को तत्काल मंजूरी दी जानी चाहिए। नकदी के अभाव से राज्य में बिक्री, वस्तुओ व सेवाओं के विनिमय, पर्यटन सहित अन्य संबंधित गतिविधियों में बड़ी गिरावट देखने को मिल रही है। इसके परिणामस्वरूप राज्य सरकार के वैट संग्रहण व अन्य आय स्त्रोंतों पर नकारात्मक प्रभाव हुआ है। व्यापार, स्टाम्प व रजिस्ट्रेशन फीस में भी बहुत कमी आई है। इससे राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर विपरीत असर पड़ रहा है, विशेष तौर पर पूजीगत व विकास व्यय प्रभावित हो रहे हैं। विमुद्रीकरण योजना से केंद्र सरकार के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष करों में बढ़ोतरी होगी, इसका लाभ राज्य सरकार के साथ भी साझा करना चाहिए। विभिन्न पर्यावरणीय कारणों से दूसरे राज्यों की तुलना में बहुत सी विकास योजनाएं व आर्थिक गतिविधियां संचालित नहीं हो पाती हैं। इसलिए विमुद्रीकरण से उत्तराखंड राज्य बुरी तरह से प्रभावित होगा। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा है कि नकदी के अभाव से राज्य में बिक्री, वस्तुओ व सेवाओं के विनिमय, पर्यटन सहित अन्य संबंधित गतिविधियों में बड़ी गिरावट देखने को मिल रही है। इसके परिणामस्वरूप राज्य सरकार के वैट संग्रहण व अन्य आय स्त्रोंतों पर नकारात्मक प्रभाव हुआ है। व्यापार, स्टाम्प व रजिस्ट्रेशन फीस में भी बहुत कमी आई है। इससे राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर विपरीत असर पड़ रहा है, विशेष तौर पर पूजीगत व विकास व्यय प्रभावित हो रहे हैं। विमुद्रीकरण योजना से केंद्र सरकार के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष करों में बढ़ोतरी होगी, इसका लाभ राज्य सरकार के साथ भी साझा करना चाहिए। विभिन्न पर्यावरणीय कारणों से दूसरे राज्यों की तुलना में बहुत सी विकास योजनाएं व आर्थिक गतिविधियां संचालित नहीं हो पाती हैं। इसलिए विमुद्रीकरण से उत्तराखंड राज्य बुरी तरह से प्रभावित होगा।

Tuesday 22 November 2016

राज्य की वार्षिक विकास दर राष्ट्रीय विकास दर से लगभग डेढ गुनी: CM

चकराता में जनसभा को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य ने अपनी 16 वर्ष की यात्रा में सहकारिता के साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। राज्य की वार्षिक विकास दर राष्ट्रीय विकास दर से लगभग डेढ गुनी है। औद्योगिक विकास दर 16 प्रतिशत व सेवा क्षेत्र में 12 व कृषि विकास दर 5.5 प्रतिशत बनी हुई है। राज्य की प्रतिव्यक्ति आय एवं औसत आय तेजी से आगे बढ़ रही है, जो राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुनी है। मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि उत्तराखण्ड समावेशी विकास के रास्ते पर कदम आगे बढ़ा रहा है। उत्तराखण्ड सर्वाधिक प्रकार के सामाजिक सुरक्षा पेंशन देने वाला पहला राज्य है। उन्होंने कहा कि 2014 में पेंशन लाभार्थियों की संख्या मात्र 01 लाख 74 हजार थी, जो अब बढ़कर 07 लाख 25 हजार हो गयी है। पेंशन की धनराशि को 400 रूपये से बढ़ाकर 1000 कर दी गयी है। विधवा, वृद्धावस्था एवं विकलांग पेंशन के अलावा अब अक्षम व परितक्वता नारी, विक्षिप्त व्यक्ति की पत्नी, बौना पेंशन, जन्म से विकलांग बच्चों को पोषण भत्ता दिया जा रहा है। साथ ही किसान, पुरोहित, कलाकार, शिल्पकार, पत्रकार, निर्माणकर्मी के साथ ही जंगरिया, डंगरिया को भी पेंशन प्रदान की जा रही है। इसके साथ ही सरकार प्रत्येक नागरिक को सुरक्ष कवच उपलब्ध कराने का प्रयास कर रही है। खिलती कलियां योजना, बच्चों के कुपोषण उन्मूलन योजना भी सरकार द्वारा संचालित की जा रही है। मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि सडक से वंचित गांव को सडक से जोडने के लिए मेरा गांव मेरी सडक, प्रधानमंत्री सडक योजना के अन्तर्गत 1425 करोड से 77 किमी सडक निर्मित कर 227 गांव को पहली बार सडक से जोडा जा रहा है। चालू वित्तीय वर्ष में सरकार 1000 किमी नई सड़कों का कार्य प्रारम्भ किया गया है। 


साथ ही सामुहिक खेती के लिए महिला मंगल दलों एवं समुहों को 01 लाख की धनराशि प्रोत्साहन राशि के रूप में दी जा रही है। उन्होने कहा कि उत्तराखण्ड पहला राज्य है जिसमें किसानों को पेंशन दी जा रही है। साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों में स्थानीय व परम्परागत खेती को प्रोत्साहन देने के लिए फसलों पर बोनस दिया जा रहा है। उन्होनें कहा कि जैविक खेती को बढ़ावा देेने के साथ ही फल पौधशालाओं की स्थापना की जा रही है। बेमौसमी सब्जी को बढ़ावा देते हुए पर्वतीय क्षेत्रों में उत्पादित स्थानीय एवं परम्परागत फसलो का समर्थन मूल्य भी दिया जा रहा है। विशाल जनसभा को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा इस राज्य को खुशहाल राज्य बनाने के लिए हम आपके साथ है। हमे मिलजुल कर इस राज्य को प्रगति के रास्ते पर ले जाना है। उन्होने कहा हमने उत्तराखण्ड मे बदलाव लाने की कोशिश की है जिसमे सबसे बाकी हित गरीबो का रखा गया है। उन्होेने कहा कि महिला शसक्तिकरण को बढावा देने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा अनेक कार्यक्रम चलाये जा रहे है। महिला स्वयं सहायता समूहो को सुदृण करने के लिए सभी समूहो को 05 हजार रूपया दिया जा रहा है। उन्होने कहा जो स्वयं सहायता समूह कार्य कर रहे है, उन्हे 20 हजार रूपये का अनुदान व सामूहिक खेती करने वाले समूहो को 01 लाख का अनुदान दिया जा रहा है। उन्होने कहा जो महिला अपने खेतो मे भी काम करेगी उसे मनरेगा से मानदेय दिया जायेगा। उन्होने कहा प्रदेश सरकार द्वारा 16 हजार पदो को भर दिया गया है दिसम्बर माह के अंत तक सभी आरक्षित पदो पर भी भर्ती कर दी जायेगी। मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि वर्ष 2014 में हताश उत्तराखंड था। चारधाम यात्रा को कुछ वर्षों के लिए टाल देने की बात कही जा रही थी। यह उत्तराखण्ड वासियों की संकल्पशक्ती का ही परिणाम है कि इस वर्ष 15 लाख से अधिक श्रद्धालु चारधाम यात्रा पर आए।उन्होने कहा कि प्रीतम सिंह के नेतृत्व में जौनसार का बहुत विकास हुआ है। केबिनेट मंत्री प्रीतम सिंह ने कहा कि जौनसार को अनुसूचित जनजाति में शामिल किए जाने से यहां के लोगों को बहुत लाभ हुआ है। राज्य सरकार गरीबों के साथ है। विकास का लाभ जरूरतमंदों तक पहुंचाने के लिए बहुत सी योजनाएं शुरू की गई हैं। उन्होने बताया कि क्वाॅसी (चकराता) में डिग्री कालेज का शासनादेश भी हो गया है।

Monday 21 November 2016

नोटबंदी के चलते मुख्यमंत्री ने उत्तराखण्ड में तीन माह तक मुफ्त इलाज का किया ऐलान

नोट बंदी के चलते उत्तराख में आ रही दिक्ततों के मद्देनजर सरकार ने प्रभावितों को राहत दी है। मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना के दायरे में न आने वाले लोगों का भी सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज होगा। रविवार को मुख्यमंत्री हरीश रावत ने नोटबदंी के बाद राज्य में आम जनता को ही रही परेशानियों को कम करने के लिए अफसरों के साथ बैठक की। उसमें कई अहम फैसले हुए
मुख्यमंत्री ने कहा कि जो सीएम स्वास्थ्य बीमा योजना के कार्ड धारकों को सरकारी अस्पतालों में जो सुविधाएं दी जा रही हैं, वे तीन माह तक प्रदेश के सभी लोगों को मिलेंगी। यानि अब उन्हें पैथालाॅजी जांच कराने में पैसा नहीं देना पडेगा। इसका लाभ लेने के लिए मरीजों को आईडी दिखानी होगी। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग के अफसरों को निर्देश दिए कि वे प्राइवेट अस्पतालों को मरीजों से चेक भी स्वीकार करने के लिए प्रेरित करें।
मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव एस रामास्वामी से कहा कि वे संबंधित संस्थाओं और विभागीय अफसरों को स्पष्ट निर्देश करें कि सरकारी वसूलियों, लाइसेंस फीस, बिजली, पानी के बिल में पुराने नोट स्वीकार करें। उन्होंने अफसरों को नोटबंदी के बाद राज्य को स्टांप, वैट समेत अन्य राजस्व, पर्यटन और निर्माण क्षेत्र में होने वाले नुकसान का आंकलन के निेर्देष भी दिए।
सीएम ने बैंक के अपफसरों से समन्वय बनाने को भी कहा, ताकि जनता को राहत दिलाई जा सके। उन्होंने बैंकों से सुदूरवर्ती क्षेत्रों में मोबाइल एटीएम की व्यवस्था का सुझाव दिया।
सीएम रावत ने ऊर्जा निगम के अधिकारियों को हिदायत दी कि जो किसान बिजली बकाया बिल के 50 फीसदी का भुगतान कर देते हैं। उनसे शेष वसूली अभी न की जाए, ताकि किसान अपनी नगदी का उपयोग बीज, खाद खरीदने में कर सकें।
बैठक में मुख्य सचिव एस रामास्वामीए प्रमुख सचिव ओमप्रकाश, डा. उमाकांत पंवार, सचिव अमित नेगी, डीएस गब्र्याल, अरविंद सिंह ह्यांकि सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे।

Tuesday 15 November 2016

CM ने किए भगवान बदरीनाथ के दर्शन, प्रदेश के सुख-समद्धि की कामना की

भगवान बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने से एक दिन पहले प्रदेश के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बदरीनाथ पहुंचकर भगवान बदरीनाथ के दर्शन किए। इस दौराम मुख्यमंत्री से भगवान बदरीनाथ से प्रदेश के सुख और समृद्धि की कामना की। गौरतलब है कि उत्तराखंड के चार धामों में से एक बदरीनाथ धाम के कपाट 16 नवंबर को शीतकाल के लिए बंद होंगे। भगवान विष्णु के प्रसिद्ध मंदिर बदरीनाथ धाम के कपाट 16 नवंबर दोपहर तीन बजकर 45 मिनट पर बंद होंगे। बदरीनाथ धाम को भारत के चार पवित्रों धामों में सबसे प्राचीन बताया गया है। सतयुग, द्वापर, त्रेता और कलियुग इन चार युगों की शास्त्रों में जो महिमा कही गयी है उसके अनुसार उत्तर में सतयुग का बदरीनाथ, दक्षिण में त्रेता का रामेश्वरम, पश्चिम में द्वापर की द्वारिका और पश्चिम में कलियुग का पावन धम जगन्नाथ धाम हैं। उत्तर में स्थित हिमालय में गन्ध्मादन पर्वत पर स्थित पावन तीर्थ बदरीनाथ को विभिन्न युगों में मुक्तिप्रदा, योगसिति व बदरीविशाल नामों से जाना गया। चार धामों में सर्वश्रेष्ठ तथा गन्‍धमादन पर्वत श्रृंखलाओं में नर और नारायण पर्वतों के मध्य पावन तीर्थ ‘बदरीनाथ’ देश-विदेश में बसे करोड़ों हिन्दुओं की आस्था का प्रतीक है।





3133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित इस मंदिर का निर्माण ८वीं सदी में गुरू शंकराचार्य द्वारा किया गया था जिसको वर्तमान स्वरूप विक्रमी १५वीं शताब्दी में गढ़वाल नरेश ने दिया था। इस क्षेत्र में आने वाले बर्फीले तूफानों के कारण यह मंदिर कई बार क्षतिग्रस्त हुआ और कई बार इसका निर्माण हुआ। मन्दिर निर्माण के संदर्भ में यह पौराणिक उल्लेख भी हैं कि ब्रह्मा आदि देवताओं ने सर्वप्रथम भगवान विश्वकर्मा से मन्दिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद राजा पुरूरवा ने मन्दिर का निर्माण करवाया। सन्‌ 1939 में सरकार ने श्री बदरीनाथ मंदिर एक्ट बना कर उसका प्रबन्ध् 12 सदस्यीय समिति को सौंपा इसके बाद रावल का कार्य सिर्फ पूजा करना रह गया। विशाल नामक राजा का तपक्षेत्र होने के कारण ‘बदरी विशाल’, भगवान विष्णु का वास और प्राचीन काल में बदरी (जंगली बेर) की क्षाड़ियों युक्त क्षेत्र होने के कारण इस क्षेत्र का नाम ‘बदरी वन’ पड़ा। जो कालान्तर में ‘बदरीनाथ’ हो गया। स्कन्दपुराण मे बदरीनाथ धम के चार युगों में अलग-अलग नामों का उल्लेख मिलता है उसके अनुसार सतुयग में मुक्तिप्रदा, त्रोता में योग-सिद्धा, द्वापर में विशाला और कलयुग में बदरिकाश्रम है। ऐसे ही अनेक धर्मशास्त्रों से यह ज्ञात होता है कि हिन्दुओं का यह पावन तीर्थ युगों-युगों से चला आ रहा है। यह वही पवित्र भूमि है जहाँ भगवान शंकर को भी अमोघ शान्ति मिली थी। धर्मशास्त्रों के अनुसार यह देवभूमि सतयुग, द्वापर और त्रेता मे योग सिद्धि प्रदान करती थी, कलियुग होने के कारण लोगों में पहले के समान आस्था नहीं रही परन्तु फिर भी इस युग में यह मुक्ति प्रदान करने वाली है। इस धाम के विषय में ऐसी मान्यता है कि भगवान बदरीनाथ के दर्शन मात्र से ही मनुष्य मोक्ष को प्राप्त होता है। तीर्थों से सर्वश्रेष्ठ बदरीनाथ धम धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान कर प्रत्येक श्रद्धालु और भक्त की हर मनोकामना पूरी करता है धर्म ग्रन्थों मे कहा भी गया है कि- बहूनि सन्ति तीर्थानि दिविभूमौ रसातले । बदरी सदृशं तीर्थं न भूतं व भविष्यति |

Sunday 13 November 2016

महान दार्शनिक गुरु नानक देव

कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन 1469 को राएभोए की तलवंडी नामक स्थान में, कल्याणचंद (मेहता कालू) नाम के एक किसान के घर गुरु नानक का जन्म हुआ। उनकी माता का नाम तृप्ता था। तलवंडी को ही अब नानक के नाम पर नकाना साहब कहा जाता है, जो पाकिस्तान में है। माना जाता है कि 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ। श्रीचंद और लक्ष्मीचंद नाम के दो पुत्र भी इन्हें हुए। 1507 में ये अपने परिवार का भार अपने श्वसुर पर पर छोड़कर यात्रा के लिए निकल पड़े। 1521 तक इन्होंने भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के प्रमुख स्थानों का भ्रमण किया। कहते हैं कि उन्होंने चारों दिशाओं में भ्रमण किया था। लगभग पूरे विश्व में भ्रमण के दौरान नानकदेव के साथ अनेक रोचक घटनाएँ घटित हुईं। 1539 में उन्होंने देह त्याग दी।  
महान दार्शनिक गुरु नानक देव  

गुरुनानक देव के चेहरे पर बाल्यकाल से ही अद्भुत तेज दिखाई देता था। उनका जन्म लाहौर के पास तलवंडी नामक गांव में कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ। उनका परिवार कृषि करके आमदनी करते थे। गुरुनानक का जहां जन्म आ था वह स्थान आज उन्हीं के नाम पर अब ननकाना के नाम से जाना जाता है। ननकाना अब पाकिस्तान में है।  

बचपन से प्रखर बुद्धिवाले नानक देव सिख धर्म के संस्थापक हैं। वे उम्र के 16वें वर्ष में शादी होने के बाद अपनी पत्नी और दोनों पुत्रों को छोड़कर धर्म के मार्ग पर निकल पड़ें। बचपन से ही उनका मन धर्म और दोनों पुत्रों को छोड़कर धर्म के मार्ग पर निकल पड़ें। बचपन से ही उनका मन धर्म और अध्यात्म में लगता था।   

कहा जाता है कि गुरुनानक देव ने एक ऐसे विकट समय में जन्म लिया जब भारत में कोई केंद्रीय संगठित शक्ति नहीं थी। विदेशी आक्रमणकारी भारत देश को लूटने में लगे थे। धर्म के नाम पर अंधविश्वास और कर्मकांड चारों तरफ फैले हुए थे। ऐसे समय में नानक एक महान दार्शनिक, विचारक साबित हुए। 

गुरु नानक देव ने भारत सहित अनेक देशों की यात्राएं कर धार्मिक एकता के उपदेशों और शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार कर दुनिया को जीवन का नया मार्ग बताया। प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर गुरु नानक जयंती मनाई जाती है।

Tuesday 8 November 2016

छठ पूजा

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन छठ पूजा की जाती है। इस पूजा का आयोजन पूरे भारत वर्ष में एक साथ किया जाता है। भगवान सूर्य को समर्पित इस पूजा में सूर्य को अध्र्य दिया जाता है। पूजन में शरीर और मन को पूरी तरह साधना पड़ता है, इसलिए इस पर्व को हठयोग भी कहा जाता है। छठ पूजा क्यों की जाती है? इसको लेकर विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। हम यहां छठ पूजा मनाने को लेकर प्रचलित कथाओं के बारे में बता रहे हैं।

भगवान राम ने की थी छठ पूजा

भगवान श्री राम सूर्यवंशी थे। इसलिए जब श्रीराम लंका पर विजय करके वापस अयोध्या आए तो उन्होंने अपने कुलदेवता सूर्य की उपासना की। उन्होंने देवी सीता के साथ षष्ठी तिथि पर व्रत रखा। सरयू नदी में डूबते सूर्य को अध्र्य दिया। सप्तमी तिथि को भगवान श्री राम ने उगते सूर्य को अध्र्य दिया। इसके बाद से आम जन भी इसी तरह से भगवान सूर्य की आराधना करने लगे। जिससे छठ पूजा की शुरुवात कहा जाने लगा।

संतान प्राप्ति के लिए होती है पूजा

साधु की हत्या का प्राश्चित करने के लिए जब महाराज पांडु अपनी पत्नी कुंती और माद्री के साथ वन में दिन गुजार रहे थे। उन दिनों पुत्र प्राप्ति की इच्छा से महारानी कुंती ने सरस्वती नदी में सूर्य की पूजा की थी। इससे कुंती पुत्रवती हुई। इसलिए संतान प्राप्ति के लिए छठ पर्व का बड़ा महत्व है। कहते हैं इस व्रत से संतान सुख प्राप्त होता है। वहीं जब पांडव राजपाट गंवाकर वन-वन भटक रहे थे तब भी द्रोपती और कुंती ने छठ पूजा की थी।

दिवाली पूजा लक्ष्मी पूजा और गणेश पूजा

दिवाली हिन्दूओं का बहुत महत्वपूर्ण और परंपरागत त्यौहार है, त्यौहार में कई हिंदू देवी-देवताओं की पूजा शामिल है, लेकिन मुख्य रूप से भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी जी की मंत्र, आरती, प्रार्थना, प्रसाद और बलिदान के माध्यम से हिन्दू धर्म में पूजा की जाती है। भक्तों द्वारा अपने भगवान की कर्मकांडवादिता और परंपरागत ढंग से पूजा की जाती हैं। देवी सरस्वती, भगवान शिव, और नौ ग्रहों की भी इस महान अवसर पर पूजा की जाती है। अग्नि देवता के साथ साथ अन्य हिन्दू देवी देवताओं की भी पूजा की जाती है। हिन्दूओं में दीवाली पूजा करने के 16 चरण है जैसे: भगवान का स्वागत करना, बैठने के लिये साफ जगह देना, पैर धोना, देवी देवताओं को अलंकरित करना, आवश्यक तत्व अर्पित करना, भगवान को वस्त्र पहनाना आदि क्रियाऍ देवी देवताओं का आशीर्वाद पाने के लिये की जाती है। किसानों द्वारा पशुओं को भी सजाया जाता है और पूजा की जाती है क्योंकि वे मानते है कि मवेशी भी धन और स्वास्थ्य के असली स्त्रोत है।


लोगों द्वारा हिंदू देवी-देवताओं के लिए एक विशेष पूजा, घरों की सफाई, भजन गाना, मंत्रों का जाप, घंटी बजाना, प्रसाद की किस्म अर्पित करना, शंख बजाना, आरती पढ़ना, प्रसाद बाँटना और परिवार में बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेकर की जाती है। लोग अन्धकार या बुराई को दूर करने और भगवान के आशीर्वाद का प्राप्त करने के लिये अपने घर के चारों ओर मिट्टी के दीये जलाते है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि देवी लक्ष्मी सबके घर आयेंगी और अपने भक्तों को अपना आशीर्वाद और समृद्धि प्रदान करेंगी। पूजा करने के बाद लोग घर की बनी हुई और तैयार की गयी मिठाईयाँ नवैध के रुप में देवी को अर्पित करते है और उसी मिठाई को परिवार के सदस्यों को प्रसाद के रुप में वितरित करते हैं। देवी देवताओं का आशीर्वाद लेने के लिये लोग इस प्रसाद को अपने माथे से लगाकर खाते हैं। पूजा के बाद लोग एक दूसरे को उपहार और मिठाईयाँ देते है।