Tuesday 15 November 2016

CM ने किए भगवान बदरीनाथ के दर्शन, प्रदेश के सुख-समद्धि की कामना की

भगवान बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने से एक दिन पहले प्रदेश के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बदरीनाथ पहुंचकर भगवान बदरीनाथ के दर्शन किए। इस दौराम मुख्यमंत्री से भगवान बदरीनाथ से प्रदेश के सुख और समृद्धि की कामना की। गौरतलब है कि उत्तराखंड के चार धामों में से एक बदरीनाथ धाम के कपाट 16 नवंबर को शीतकाल के लिए बंद होंगे। भगवान विष्णु के प्रसिद्ध मंदिर बदरीनाथ धाम के कपाट 16 नवंबर दोपहर तीन बजकर 45 मिनट पर बंद होंगे। बदरीनाथ धाम को भारत के चार पवित्रों धामों में सबसे प्राचीन बताया गया है। सतयुग, द्वापर, त्रेता और कलियुग इन चार युगों की शास्त्रों में जो महिमा कही गयी है उसके अनुसार उत्तर में सतयुग का बदरीनाथ, दक्षिण में त्रेता का रामेश्वरम, पश्चिम में द्वापर की द्वारिका और पश्चिम में कलियुग का पावन धम जगन्नाथ धाम हैं। उत्तर में स्थित हिमालय में गन्ध्मादन पर्वत पर स्थित पावन तीर्थ बदरीनाथ को विभिन्न युगों में मुक्तिप्रदा, योगसिति व बदरीविशाल नामों से जाना गया। चार धामों में सर्वश्रेष्ठ तथा गन्‍धमादन पर्वत श्रृंखलाओं में नर और नारायण पर्वतों के मध्य पावन तीर्थ ‘बदरीनाथ’ देश-विदेश में बसे करोड़ों हिन्दुओं की आस्था का प्रतीक है।





3133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित इस मंदिर का निर्माण ८वीं सदी में गुरू शंकराचार्य द्वारा किया गया था जिसको वर्तमान स्वरूप विक्रमी १५वीं शताब्दी में गढ़वाल नरेश ने दिया था। इस क्षेत्र में आने वाले बर्फीले तूफानों के कारण यह मंदिर कई बार क्षतिग्रस्त हुआ और कई बार इसका निर्माण हुआ। मन्दिर निर्माण के संदर्भ में यह पौराणिक उल्लेख भी हैं कि ब्रह्मा आदि देवताओं ने सर्वप्रथम भगवान विश्वकर्मा से मन्दिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद राजा पुरूरवा ने मन्दिर का निर्माण करवाया। सन्‌ 1939 में सरकार ने श्री बदरीनाथ मंदिर एक्ट बना कर उसका प्रबन्ध् 12 सदस्यीय समिति को सौंपा इसके बाद रावल का कार्य सिर्फ पूजा करना रह गया। विशाल नामक राजा का तपक्षेत्र होने के कारण ‘बदरी विशाल’, भगवान विष्णु का वास और प्राचीन काल में बदरी (जंगली बेर) की क्षाड़ियों युक्त क्षेत्र होने के कारण इस क्षेत्र का नाम ‘बदरी वन’ पड़ा। जो कालान्तर में ‘बदरीनाथ’ हो गया। स्कन्दपुराण मे बदरीनाथ धम के चार युगों में अलग-अलग नामों का उल्लेख मिलता है उसके अनुसार सतुयग में मुक्तिप्रदा, त्रोता में योग-सिद्धा, द्वापर में विशाला और कलयुग में बदरिकाश्रम है। ऐसे ही अनेक धर्मशास्त्रों से यह ज्ञात होता है कि हिन्दुओं का यह पावन तीर्थ युगों-युगों से चला आ रहा है। यह वही पवित्र भूमि है जहाँ भगवान शंकर को भी अमोघ शान्ति मिली थी। धर्मशास्त्रों के अनुसार यह देवभूमि सतयुग, द्वापर और त्रेता मे योग सिद्धि प्रदान करती थी, कलियुग होने के कारण लोगों में पहले के समान आस्था नहीं रही परन्तु फिर भी इस युग में यह मुक्ति प्रदान करने वाली है। इस धाम के विषय में ऐसी मान्यता है कि भगवान बदरीनाथ के दर्शन मात्र से ही मनुष्य मोक्ष को प्राप्त होता है। तीर्थों से सर्वश्रेष्ठ बदरीनाथ धम धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान कर प्रत्येक श्रद्धालु और भक्त की हर मनोकामना पूरी करता है धर्म ग्रन्थों मे कहा भी गया है कि- बहूनि सन्ति तीर्थानि दिविभूमौ रसातले । बदरी सदृशं तीर्थं न भूतं व भविष्यति |

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